देहरादून। उत्तराखंड सरकार ने भूमि एवं संपत्ति पंजीकरण से जुड़े महत्वपूर्ण शुल्क में बड़ा परिवर्तन करते हुए रजिस्ट्री शुल्क को दोगुना कर दिया है। अब प्रदेश में किसी भी मूल्य की संपत्ति की रजिस्ट्री करवाने पर अधिकतम शुल्क 25 हजार रुपये के स्थान पर 50 हजार रुपये देना होगा। सरकार का मानना है कि यह निर्णय राज्य की राजस्व वृद्धि के लिए आवश्यक और प्रभावी कदम है। वर्ष 2015 में यह शुल्क 10 हजार रुपये से बढ़ाकर 25 हजार रुपये किया गया था, और लगभग दस वर्ष बाद इसमें एक बार फिर संशोधन किया गया है। प्रदेश में बढ़ते विकास कार्यों और संसाधनों की मांग को देखते हुए यह बदलाव लंबे समय से आवश्यक माना जा रहा था।
सोमवार को वित्त विभाग द्वारा जारी आदेशों के बाद महानिरीक्षक निबंधन (IG Stamps) कार्यालय ने भी सभी जिलों के उप-पंजीयकों को इस परिवर्तन संबंधी औपचारिक पत्र भेज दिया है, जिसके बाद यह नया शुल्क ढांचा तत्काल प्रभाव से लागू हो गया है। अब तक की व्यवस्था के तहत संपत्ति के मूल्य का दो प्रतिशत रजिस्ट्री शुल्क निर्धारित था, जिसकी अधिकतम सीमा 25 हजार रुपये थी। उदाहरण के तौर पर यदि कोई व्यक्ति 10 लाख रुपये मूल्य की संपत्ति खरीदता था, तो दो प्रतिशत के अनुसार उसे 20 हजार रुपये शुल्क देना पड़ता था। इसी तरह 12.5 लाख रुपये तक की रजिस्ट्री पर पूरा दो प्रतिशत लगाकर 25 हजार रुपये शुल्क तय होता था। किंतु यदि रजिस्ट्री का मूल्य इससे अधिक होता, तो भी शुल्क 25 हजार रुपये से अधिक नहीं लिया जाता था। यही सीमा अब बढ़ाकर 50 हजार रुपये कर दी गई है।
इस संशोधित व्यवस्था का अर्थ यह है कि संपत्ति कितनी भी महंगी क्यों न हो, रजिस्ट्री शुल्क 50 हजार रुपये से अधिक नहीं लिया जाएगा। कई राज्यों में यह सीमा निर्धारित नहीं है। पड़ोसी राज्य उत्तर प्रदेश में रजिस्ट्री शुल्क एक प्रतिशत है और उसकी कोई उच्चतम सीमा तय नहीं की गई है, जिसके कारण बड़ी संपत्तियों पर भारी शुल्क देना पड़ता है। उत्तराखंड में शुल्क की अधिकतम सीमा तय करने का उद्देश्य आम उपभोक्ताओं पर अनावश्यक भार न डालना है, साथ ही राज्य को स्थाई राजस्व स्रोत प्रदान करना भी है।
आईजी स्टांप सोनिका ने बताया कि दस वर्ष बाद यह संशोधन आवश्यक था क्योंकि भूमि और संपत्तियों के मूल्य में तेजी से वृद्धि हुई है। ऐसे में राज्य के राजस्व ढांचे को मजबूत बनाए रखने के लिए यह प्रावधान लागू किया गया है। उनका कहना है कि सीमा निश्चित होने से आम नागरिकों पर अत्यधिक आर्थिक बोझ नहीं पड़ेगा और उच्च मूल्य की संपत्तियों पर भी शुल्क का निर्धारण संतुलित रहेगा। सरकार के इस निर्णय से जहां राज्य को अतिरिक्त राजस्व प्राप्त होगा, वहीं भूमि क्रय-विक्रय प्रक्रिया भी अधिक सुव्यवस्थित हो सकेगी। विशेषज्ञों का मानना है कि स्थाई राजस्व स्रोतों को मजबूत करने के लिए ऐसे संशोधन समय-समय पर आवश्यक होते हैं, खासकर तब जब बुनियादी ढांचे, स्वास्थ्य, शिक्षा और प्रशासन पर सरकारी खर्च लगातार बढ़ रहा हो।
