देहरादून। प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष करन माहरा ने उत्तराखंड में बाहरी व्यक्तियों के कृषि भूमि खरीदने पर रोक लगाने के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी की घोषणा पर तीखी प्रतिक्रिया व्यक्त की। उन्होंने कहा कि वर्ष 2017 में भाजपा की सरकारें बनने के बाद से भूमि की खरीद व बिक्री तेज हुई है। मुख्यमंत्री की मंशा साफ है तो उन्हें पहले भू-कानून में किए गए संशोधन को हटाना चाहिए।
प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष करन माहरा ने एक बयान में कहा कि सरकार ने भू-कानून पर समिति बनाकर राज्य की जनता को गुमराह किया है। राज्य गठन के बाद पहली निर्वाचित एनडी तिवारी सरकार ने राज्य हित में व्यापक चर्चा के बाद भू-कानून की समस्या का समाधान किया था।
वर्ष 2018 में भाजपा की त्रिवेंद्र सिंह रावत सरकार ने उत्तराखंड जमींदारी विनाश एवं भूमि बंदोबस्त अधिनियम में संशोधन कर भूमि की लूट की खुली छूट दी। इसका दुरुपयोग हुआ। गैरसैंण-भराड़ीसैंण में भूमि खरीद पर लगे प्रतिबंध को भी बख्शा नहीं गया।
महारा ने कहा कि आज प्रदेश का जनमानस उद्वेलित है। उत्तराखंड ही एकमात्र हिमालयी राज्य है, जहां राज्य के बाहर के लोग पर्वतीय क्षेत्रों की कृषि भूमि गैर कृषि उद्देश्यों के लिए खरीद रहे हैं। सशक्त भू-कानून नहीं होने से प्रदेश के भूमिधर भूमिहीन हो रहे हैं, इससे स्थानीय निवासियों में रोष है। इसका असर पर्वतीय राज्य की संस्कृति, परंपरा, अस्मिता और पहचान पर पड़ रहा है। देश के कई राज्यों में कृषि भूमि की खरीद से जुड़े सख्त नियम हैं।
पड़ोसी राज्य हिमाचल में भी कृषि भूमि के गैर-कृषि उद्देश्यों के लिए खरीद अथवा बिक्री पर रोक है। गैर कृषि उद्देश्य के लिए खरीदी गई भूमि का आंकड़ा सरकार के पास भी नहीं है।
महारा ने कहा कि राज्य की सीमित कृषि योग्य भूमि का उपयोग ही बुनियादी ढांचे के विकास के लिए हुआ। तराई में खेती की जमीन पर उद्योग आए। शहरीकरण हुआ। पहाड़ों में जिला मुख्यालय, शिक्षण संस्थान, सब कृषि भूमि पर बने।
टिहरी बांध की झील से पहले भिलंगना और भागीरथी की घाटियां बेहद समृद्ध कृषि भूमि थीं, जो टिहरी बांध का हिस्सा बन गईं। उन्होंने कहा कि मुख्यमंत्री ने यह घोषणा आम चुनाव को ध्यान में रखकर की है। इसमें देर हो चुकी है और बचाने के लिए अब राज्य सरकार के पास भूमि नहीं है।
